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________________ जैन पूजा पाठ सग्रह देव-शास्त्र-गुरु पूजा भाषा अडिल्ल छन्द । प्रथम देव अरहन्त सुश्रुत सिद्धान्त जू। गुरु निरयन्ध महन्त सुकतिपुरपंथ जू । तीन रतन जग माहि लो ये भवि ध्याइये । तिनकी भक्तिप्रसाद परमपद पाइये ॥ दोहा-पूजों पद अरहन्त के, पूजों गुरुपद सार ! पूजों देवी सरस्वती, नितप्रति अष्ट प्रकार ।। ॐ हीं देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र अवतर अवतर सवौपट आह्वानन । - ही देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । गीता छन्द। सुरपति उरगनरनाथ तिनकर, बंदनीक सुपदप्रसा। अति शोभनीक सुवरण उज्ज्वल,देखिछवि मोहित लभा ।। वर नीर क्षीरलमुद्रघट भरि अग्र तसु बहुविधि नवं । अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ लित पूजा रचूं ।। दोहा-मलिन्न वस्तु हरलेत सब, जल स्वभाव मलछीन जास पूजों परमपद, देवशास्त्र गुरु तीन ॥१॥ ॐही देषशास्त्रगुरुसमूह जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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