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जन पूजा पाठ सप्रह
दोहा-विविध भाँति परिमलसुसन, भ्रमर जाल आधीन ।
जासों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन !!!! ॐ ही देवशास्त्रगुरुभ्य. कामवाणविध्वसनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ अति सबल सदकंदर्प जाको क्षुधा-उरग असाल है। दुल्लह सयानक तासु नाशनको सुगरुडलमान है। उत्तम छहों रसयुक्त नित, नैवेद्य करि घृतमें प→ । अरहन्त श्रुत-सिद्धांत गुरु-निरग्रन्थ नित पूजा रयूँ ॥ दोहा - नानाविधि संयुक्तरस, व्यञ्जन सरस नवील ।
जासों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु ती ॥५॥ ॐ हीं देवशास्त्रगुरुभ्य क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५॥ जे त्रिजग-उद्यम नाश कीने, मोह-तिसिर सहावली । तिहि कर्मघाती ज्ञानदीपप्रकाशजोति प्रभावली ॥ इह साँति दीप प्रजाल कंचन के सुभाजनमें खचूँ । अरहंत श्रुत-सिद्धांत गुरु-निरग्रन्थ नित पूजा रचूँ । दोहा- स्वपर प्रकाशक जोति अति,दीपक तसकर हील ।
जालों पूजौं परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥६॥ *ही देवशास्त्रगुरुभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६॥