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एक मुक्ति का मार्ग देव तुमने परकास्या । गहन चतुरगतिमार्ग अन्य देवनकूं भास्या ॥ हम सब देखन हार, इसी विधि भाव सुमिरिकैं । भुज न बिलोको नाथ कदाचित गर्भ जु धरिकैं ||२५|| केतु विपक्षी अर्कतनो फुनि अग्नितनो जल | अम्बुनिधि अरि प्रलय कालको पवन महाबल ॥ जगतमांहिं जे भोग वियोग विपक्षी है निति । तेरो उदयो है विपक्षतै रहित जगत्पति ॥ २६ ॥ जाने बिन हू नवत आपको शुभ फल पावे | नमत अन्य को देव जानि सो हाथ न आवे ॥ हरित मणीकूं कांच, कांच मणी रटत हैं । ताकी बुधि में भूल, सूल सणि को न घटत हैं ||२७|| जे विवहारी जीव वचन मैं कुशल सयाने । ते कपायकरि दुग्ध नरनकों देव वखानें ॥ ज्यों दीपक बुझि जाय ताहि कह 'नन्दि' भयो है । भग्न घड़े को कहैं कलश ए मंगल गयो है ॥२८॥ स्यादवाद संयुक्त अर्थ का प्रगट चखानत । हितकारी तुम वचन श्रवणकरि को नहिं जानत ॥ दोषरहित ए देव शिरोमणि वक्ता जगगुर । जो ज्वरसेती मुक्त भयो सो कहत सरल सुर ||२६||
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