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जैन पूजा पाठ मह
कछू न तोहिं देखके जहाँ तुही विशेखिया । मनोग चित्त चोर और भूल हूँ न पेखिया ।। अनेक पुत्ररंतिनी नितंविनी सपूत हैं । न तो समान पुत्र और माततै प्रसूत हैं || दिशा धरंत तारिका अनेक कोटिको गिनै । दिनेश तेजवंत एक पूर्व ही दिशा जनै ॥ पुरान हो पुमान हो पुनीत पुन्यवान हो । कहैं मुनीश अंधकार - नाशको सुभान हो । महंत तोहि जानके न होय वश्य कालके । न और नोहि मोखपंथ देय वोहि टालके ॥ अनंत नित्य चिचकी अगस्य रम्य आदि हो । असंख्य सर्वव्यापि विष्णु ब्रह्म हो अनादि हो || महेश कामकेतु योग ईश योग ज्ञान हो । अनेक एक ज्ञानरूप शुद्ध संतमान हो || तुही जिनेश बुद्ध है सुबुद्धिके प्रमानतें । तुही जिनेश शंकरो जगत्त्रये विधानतें ॥ तुही विघात है तही सुमोखपंथ नरोत्तमो तुही प्रसिद्ध अर्थके विचारतें ॥ नमों करूं जिनेश तोहि आपदा निवार हो । नमो करूं सु भूरि भूमि-लोकके सिंगार हो || नमों करूं भवान्धि-नीर- राशि - शोष हेतु हो । नमो करूं महेश तोहि मोखपंथ देतु हो ||
धारतें ।