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________________ मिसनन्धमि भन्य-शिरादिनस्त्वाम्। आलोस्पन्ति रमन नदन्तमुनः चामीकराद्रि-शिरसीर नवाम्बुवाहम् ॥२३॥ उगहना तप शिति-प्रति-मटलेन लुमन्द-स्वपिशोपतलभूष मांनिष्पनापि यदि या तप वीतराग नीरागत घननि फोन सचेतनोऽपि ॥२४॥ मी माः प्रमादमध्य भजनमेन____ मागन्य निर्यनि-पूरी प्रति सार्थवारम् । एकनिवेदयति देव जगत्त्रयाय मन्ये नदनामिनमः गुरदुन्दुभिस्ते परशा गोगिता भरता भुवनेगु नाथ नागन्वितो विधुरयं विहताधिकारः। मृत्ता-कलाप फलितो-मितातपत्र व्याजानिया नृत-तनुर्बुवमम्युपेतः ॥२६॥ म्येन अपरित-जगत्त्रय-पिण्डितेन कान्ति-प्रताप-यशसामिव संचयेन । माणिक्य-हम-रजत-प्रसिनिमिवेन सालत्रयेण भगवन्नभितो विभासि ।। २७ ।। दिव्य-मजो जिन नमत्रिदशाधिपाना मुत्सृज्य रख-रचितानपि मौलि-बन्धान । पाटी श्रयन्ति भरतो यदि वापरत्र त्वत्सदमे सुमनसो न रमन्त एव ॥ २८॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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