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जेन पूजा पाठ सह
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सवैया |
मिथ्या-तम नाशवे को, ज्ञान के प्रकाशवे को । आपा पर भासवे को, भानुसी बखानी है ॥ छहो द्रव्य जानवे को, वसुविधि भानवे को । स्वपर पिछानवे को, परम प्रमानी है । अनुभौ बताइवे को, जीव के जतायवे को । काहून सतायवे को, भव्य उर आनी है ॥ जहां तहां तारवे को, पार के उतारवे को । सुख विस्तारवे को ऐसी जिनवानी है ॥ ५ ॥
दोहा -- जिनवाणी की स्तुति करै, अल्प बुद्धि परमान । 'पन्नालाल विनती करै, दे माता मोहि ज्ञान ॥ हे जिनवाणी भारती, तोहि जपू दिन रैन । जो तेरा शरणा गहै, सुख पावै दिन रैन ॥ जा वानी के ज्ञानतै, सूझे लोकालोक । सो वानी मस्तक चढ़ो, सदा देत हों धोक ॥
वर्णी वाणी की डायरी से
ससार की दशा जो है वही रहेगी इसको देख कर उपेक्षा करनी चाहिये । केवल स्वास्म गुण और दोषों को देखो। उन्हें देख कर गुण को ग्रहण करो और दोपों को त्यागो ।