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________________ ताहि मेरु उत्तर ऐरावत सोहनो आगत नागत वर्त्तमान मनमोहनो ॥ निहे चौबीसी तीन तने जिनरायजी । बहत्तर जिन सर्वज्ञ नमीं शिरनायजी ॥ २ ॥ काही द्रव तीन दोसी के यदत्सरि for Tru तुमलता एन्छ । खण्ड धातुको विजय संग के दक्षिण दिशा भरत शुभू जान । तहां चौबीसी तीन विराज आगत नागत अवमान ॥ तिनके चरण कमलको निशिदिन अर्घ चढ़ाय करूँ उर ध्यान इस संसार भ्रमण तारी अहो जिनेश्वर करुणावान ॥ ही दगा दिसम्बभी दीनकची निर्वा३ि ॥ इसी द्वीपको प्रथम शिखर के उत्तर ऐरावत जो महान । आगत नागत वर्त्तमान जिन महत्तरि सदा शास्वते जान ॥ तिनके चरणकमलको निर्शाटन अर्ध चढ़ाय करूँ उर ध्यान । संसार भ्रमण तारो अहो जिनेश्वर करुणावान ॥ इस एरापनक्षेत्र सम्बन्धो पूर्व तर ताब पति वा ॥ ४ ॥ चौपाई न् खण्ड धातु गिरि अन्चल जु मरु, दक्षिण तास भरत वहु घेरु । तामें चौवीसी त्रय जान, आगत नागत अरु वत्त मान ॥ की पश्चिम व दक्षिण दिश' भरतक्षत्र सम्बन्धी तीनवाणी कन्यो अनिपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ अचल से उत्तर दिश जाय, ऐरावत शुभ क्षेत्र वताय तामें चौवीसी त्रय जान, आगत नागत अरु वत्त मान
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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