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ॐ ह्रीं धातुकीखण्ड की पश्चिमदिश अचलमेरु के उत्तर दिन ऐरावत क्षेत्र सम्वन्धी चोवीसी के चहत्तर जिनेन्द्रे भ्यो अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
सुन्दरी छन्द ।
द्वीप पुष्कर की पूरव दिशा, सन्दिर मेरुकी दक्षिण भरत-सा । ता विषै चौबीसी तीन जू, अर्ध लेय जजों परवीन
जू ॥
ॐ ह्रीं पुष्करद्वीप की पूर्वदिश मन्दिरमेह की दक्षिणदिश भग्तक्षेत्र सम्बन्धी नीसचौबीसी के हरि जिनेन्द्रे भ्यो अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
गिरि सुमन्दिर उत्तर जानियो, क्षेत्र ऐरावत सुबखानियो । ता विषै चौबीसी तीन जू, अर्घ लेय पूजों परवीन नृ ॥
ॐ ह्रीं पुकरद्वीप की पूर्वादिश मदिरमेरु की उत्तर दिन ऐरावत्क्षत्र सम्बन्धी तीन जिनेन्द्रेभ्यो अर्ध निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ पद्धडी छन्द ।
पश्चिम पुष्कर गिरि विद्यु, तमाल, तादक्षिण भरत वन्यो रसाल तामें चौवीसी है जु तीन, वसु द्रव्य लेय पूजों प्रवीन ॥
ॐ पुष्करार्द्ध द्वीप की पश्चिमदिश विद्युन्मालीनेरु के दक्षिणदिन भरतक्षेत्र नम्ववी तीन चौवीसी के महत्तरि जिनेन्द्रे भ्यो अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९॥
याही गिरिके उत्तर जु ओर, ऐरावत क्षेत्र तनी सुठौर । ता चौबीसी है जु तीन, वसु द्रव्य लेय पूजों प्रवीन ॥
ॐ ह्रीं पुष्करार्द्धद्वीप की पश्चिमदिश विद्युन्मालीमेरु के उत्तरदिन ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी तीनचौवीसी के वहत्तरि जिनेन्द्रे भ्यो अघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १० ॥ कुण्डलिया ।
द्वीप अढाई के विषै, पांच मेरु हितदाय | दक्षिण उत्तर तासुके, भरत ऐरावत भाय ॥ भरत ऐरावत भाय एक क्षेत्र के मांहीं ।