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जग पूजा ५०
मारै मरे रहे आधार, दीसै अर लोकनि मे मारं । वादर जीया चहूँ पसरतं, सूक्ष्म जीव इन ते विपरीत ॥६॥ शुभ के उर्दू होय शुभ काया, अशुभ उदै तन अशुभ बताया | शुभग उदै भाग का पूरा, अशुभ उठे जभाग हजुरा ॥ १० ॥ सुस्वर उदय कोकिला वानी, दुस्वर गर्दभ - ध्वनि सम जोनी । आदर तैं बहु आदर पावें, उदय अनादर तें न सुहावै ॥ ११ ॥ जसके उदय सुजस जग मांही, अजस उदय अपजस जग मांही । थान प्रमान दुविधि निर्मानं, तीर्थङ्कर है पुण्य प्रधानं ॥ १२ ॥ दोहा
व्यालीस और तिरानवें, तथा एकसौ तीन । द्यानत सो प्रकृति हरी, सिद्ध अमूरति लीन ॥
ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नामकर्मविनाशनाय अर्घ्य गोत्रकर्मनाशक सिद्ध जयमाला ।
दाहा
ज्यों कुम्हार छोटो बड़ौ, भांड़ौ घड़ा जनेय । गोत्र-कर्म त्यों जीवको, ऊँच नीच कुल देय ॥ १॥
चौपाई।
२ ॥
३ ।।
नीच गोत्र पशु नर्क निहारं ऊंच गोत्र सब देव कुमार | मनुप मांहि दो गोत्र बखाने, नीच गोत्र सच शूद्र प्रवानै ॥ ब्राह्मण क्षत्री वैश्य मझारं, मद्य मांस जो करे अहारं । जो पंचनि बाहिर होई, नीच गोत्र कहिये नर सोई ।। परगुणको औगुण करि भाख, निज औगुणको गुण अभिलाष । परको निन्दै आप बड़ाई, बांधे नीच गोत्र दुखदाई ॥ नीच गोत्रको मुनित्रत नाहीं, क्योंकर जाय मुकतिके माही. नीच काज तज ऊंच सम्हारे, दया धरम कर आतम तारे ॥ ५ ॥ सोरठा ऊँच नीच दो गोत्र, नाश अगुरुलघु गुण भये । द्यानत आतम जोत, सिद्ध शुद्ध बंदों सदा ॥
४ ॥
ही श्री णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिभ्यो गोत्रकर्मविनाशनाय अयं ० ।