________________
" ला पा० प्रमा
हा
.
मानुष आयु धरै नर देही, इष्ट वियोग लहै दुःख तेही । धन संपतिको सदा भिखारी, प्रभुता मांहि पचै ससारी ॥ ६ ॥ देव आयुत देव कहाया, परको विभव देख खुनसाया। मरण चिह्न लख अति दुःख दानी, इम चारौं गति भटकै प्राणी ।।
द्यानत चारौं आयुके, तुम नाशक भगवान ।
अटल शुद्ध अवगाहना, नमों सिद्ध गुणखान ।। ही श्री णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्टि यो आयुकर्म विनाशनाय अध्य० ।
नामकर्मनाशक सिद्ध जयमाला । चित्रकार जैसे लिखे, नाना चित्र अनूप। नाम-कर्म तैसे करै, चेतन के बहु रूप ॥१॥
चौपाई। गतिके उदय चहूं गति जानी, जाति पंचइन्द्री सव प्राणी। आनुपूरवी गति ले जाई, दो विहाय दो चाल बताई ॥२॥ वन्धन पञ्च पञ्च विधि काया, तन बन्धान पश्च दृढ़ लाया। वन्ध सघन सो पञ्च संघातं, अंग उपंग तीन ही गातं ॥३॥ वरण पंच तन रंग वखाने, पांचों ही तन के रस जाने।। गन्ध दोय तन मांहि कहे हैं, आठ फरस तन मांहि लहे हैं ॥४॥ पट संठान देह आकारं, हाड छह भेद संहनन धारं उड़े पड़े न अगुरु लघु काया, स्वास उस्वास नाक सुर गाया ॥५॥ निज दुःख दे उपघात शरीरं, तन पर घात करें पर पीरं । चन्द्र विम्ब जिय देह उद्योतं, भानुर्विब जिय आतप होत ॥६॥ थावर उढे सुथिर न चले है, उस के उदैते चलै हलै है। परयापत पूरी जब होई, खिरे बीच अपरयापति सोई ॥७॥ थिरके उदै सुथिर तन गाया, अथिर उदैत कंप काया। तन प्रत्येक जिय एक भनन्तं, साधारण तन जीव अनन्त ॥८॥