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जैन पूजा पाठ मग्रह
दर्शनावरणकर्मनाशक मिट्ट जयमाला ।
हा
जैसे भूपति दरश को, होन न दे दरवान | तैसे दरशन आवरण, देख न देई सुजान ॥ १॥
चौपाई। जाके उदै आस नहि होई, चक्ष दर्शनावरणी मोई। नहिं मुख नाक फरम मुख करणं, उदै अवक्ष दर्शनावरण || २ || अवधि दर्श प्रमाण विलोके, अवधि दर्शनावरणी रोके । केवल लोकालोक निहारे, केवल दर्शनावरण निवारें || ३ || निद्रा उदै सबै तन सोचे, थोरी नीट सुरत कछु हो 1 प्रचला बलसौ आंस खुली है, अर्ह मुढी - मी अई खुली है ॥ ४ ॥ निद्रा-निद्रा उदै बखानी, पलक उवार सके नहि प्राणी प्रचलाप्रचलाउदै कहावे, लार वह मुख अग चलावै ॥ उठे चलें बोले सुध नाही, जोर विशेष बढ़े तन माही । काम प्रचण्ड तास ते होवे, स्त्यानगृद्धि निद्रा जो गो ॥ ६ ॥ दोहा
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५ ॥
दरशन आवरणी हतै, केवल दर्शन रूप | द्यात सिद्ध नमो सदा, अमल अचल चिद्रूप ॥
ॐ ह्रीं श्री गमो निद्वाण निपरमेष्ठिम्पो दर्शनावरणी कर्नविनाशनाय अ वेदनीयकर्मनाशक सिद्ध जयमाला सोरटा
शहद मिली असिधार, सुख दुःख जीवनको करै । कर्मवेदनीय सार, साताअसाता देत हैं ॥ १ ॥
चौपाई छन् ।
पुन्नी कनक महल मे सोधे, पापी राह परौ दुःख रोवें । पुन्नी वांछित भोजन खावें, पापी मांगें टूक न पावै ॥ २ ॥