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________________ अष्ट करम बनजाल, मुकति मांहि तुम सुख करौ । खेऊँ धप रसाल, मम निकाल बनजाल से ॥ ७ ॥ परमेडियो अष्टमं ॐ श्री धूप निर्वपामीति स्वाहा । अन्तराय दुःखटार, तुम अनन्त थिरता लिये । पूजों फल दरशाय, विघनटार शिव फल करो ॥ ८ ॥ ॐ श्री सारा सिपष्टिभ्यो मोक्षाफल निर्वपामीति स्वाहा । हममें आठों दोष. जजौं अरघलों सिद्धजी । दीजे वसु गुण मोहि, कर जोरे यानत खड़े ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं श्री पन विनागमियो अनध्यं पदप्रातने अन्यं निर्वपामीति स्वाहा । ज्ञानावरणकर्मनाशक सिद्ध जयमाला । दोहा मूरति ऊपर पट कुरो, रूप न जाने कोय । ज्ञानावरणी करमतें, जीव अज्ञानी होय ॥१॥ चौपाई तिय छत्तिम विधि मति वणी, ताहि ढकै मति ज्ञानावरणी । द्वादश विधि श्रुत ज्ञान न होवें श्रुत ज्ञानावरणी सो होवे ॥ २ ॥ तिविधि पर विधि अवधि छिपाने, अवधि ज्ञानावरण कहावे । जो विधि मन:पर्यय नहि हो है, मन:पर्यय आवरणी सो है ॥ ३॥ केवलज्ञान अनन्तानन्ता, केवल ज्ञानावरणी हन्ता । उदय अनुदय मृरख ठानें, कुमति कुत कुअवधि पहिचानें ॥ ४ ॥ क्षय उपास करि सम्यकधारी, चारों ज्ञान लहै अधिकारी | ज्ञानावरणी सर्व विनाश, केवल ज्ञान रूप परकाश ॥ ५ ॥ दोहा ज्ञानावरणी पञ्च हत, प्रगट्यो केवलज्ञान । यानत मनवचकायसों, नमीं सिद्ध गुणखान ॥ ॐ ही श्री णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्टिभ्यो ज्ञानावरणी कर्मविनाशनाय अव्यं० ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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