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जन पूजा पाठ सग्रह
वृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा दोहा
परम ब्रह्म परमातमा, परमजोति परमीश । परमनिरञ्जन परमपद, नमों सिद्ध जगदीश ॥
ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण मिद्ध परमेष्ठिन । अत्र अवतर अवतर सवौषट् आह्वानन । ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण सिद्ध परमेष्ठिन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन | ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण मिद्ध परमेष्ठिन । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् अथाष्टकं, सोरठा ।
मोहि तृषा दुःख देत, सो तुमने जीती प्रभू । जलसौं पूजों तोहि, मेरो रोग मिटाइयो ॥ १ ।
ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। हम भव आप महि, तुम न्यारे संसार तैं । कीजे शीतल छह, चन्दन सों पूजा करों ॥ २ ।
ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्वाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो समारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीपि स्वाहा।
हम औगुण समुदाय, तुम अक्षय सब गुण भरे । पूजौं अक्षत ल्याय, दोष नाश गुण कीजिये ॥ ३ ॥ .
श्री णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्टिभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षत निर्वपामीति स्वाहा काम अनि है मोहि, निश्चैय शील सुभाव तुम । फूल चढ़ाऊँ तोहि, सेवक की बाधा हरो ॥ ४ ॥
ह्रीं श्री णमो सिद्धाण सिद्धधपरमेष्ठिभ्यो कामवाण विध्वसनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ।
हमें क्षुधा दुःख सूर, ध्यान खड्ग सौं तुम हती | मेरी बाधा चूर, नेवजसौं पूजा करौं ॥ ५ ॥
ॐ श्री णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा।
सोहतिमिर हम पास, तुम पै चेतन जोत है । पूजौं दीप प्रकाश, मेरो तम निरवारियो ॥ ६ ॥ ॐ ह्रीं श्री णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा