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पुन्नी की जवाहर शर्म. पापी फटे कपड़े ओ | पुन्नी का भार कटोरा, पापी के कर प्याला फोरा ॥ ३ ॥ पुन्ना पाप नंगे पग धावन्ता । पुन्नी के पापी श्री सोशले घावें ॥ ४ ॥ पुन्नजपरा सुनेनहिं कोई। इन्ती न दनित आये, पापी धन देवन नदि पाये ॥ ५ ॥ पुन्नी की मापे, पापी जन को सुप न लगाएँ । नीरोग नपा, पापी को नित व्याधि मता ॥ ६ ॥ इन्नता, पापीनन फानी कारी । पुन्नी के सुतकी कमाई पाप से है दुदाई ॥ ७ ॥ पुनी गई फिर पाप के फर से गिर जायें । पुन्नी
के भोगे, पापी महादुषो अति रोव ॥ ८ ॥ पुण्य पाप दोऊ डार, कमवेदन क्ष के । सिद्ध जलावन हार, यानत निखाधा करो ||
ॐ श्री
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Refinition मित्र जयमाला ।
ज्यों मदिरा के पान नं. सुधबुधसबै भुलाय | त्यो मोहनी-कर्म उ. जीव गहिल हो जाय ॥
पोवाई
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दरशन मोर तीन परकार, नाश का सम्पक गुण सारं । मिया जुरी उ जब आप धर्म मधुर रम भूल न आये ॥ २ ॥ मिश्र भार विपरित एक सम्यक मिध्यतं । are a fara मताय, चल मूल शिथिल दीप उपजावें ॥३॥ चारित्र मोह पथम प्रकार. जो मेरे सम्पक आचारं ।