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जैन पूजा पाठ समह
पगतल चलत चलत अचला तब कंपत अचल शिखर ठहराय । निपघ नील अचलाघर मानौ भये चलाचल क्रोध बसाय ॥ ६ ॥ सुन विक्रमबलबाहुवलीनें लये चक्रपति अधर उठाय । चक्र चलायो चक्रपति तव सो भी विफल भयो तिहि ठाय ॥ अति प्रचण्ड भुजदण्ड सुंड सम नृप शार्दुल बाहुबलि राय । सिंहासन मगवाय नासपै अग्रज को दोनों पधराय ॥ ७ ॥ राजरमा रामासुर धुन में जोवन दमक दामिनी जान | भोग भुजन जन सम लग को जान त्याग कोनों तिहि थान ॥ अष्टापद पर जाय वीरनृप वीर व्रती घर कीनों ध्यान । अचल अङ्ग निरभन सन तन सवतसरलों एक स्थान ॥ ८ ॥ विषधर वम्बी करी चरनतल उपर वेठ चढी अनिवार । युगनङ्घा कटि बाहुवेटि कर पहुॅची वक्षस्थल शिर के केश वढे जिस मांही नभचर पक्षी वसे अपार । धन्य-धन्य इस अचल ध्यान की महिमा सुर गावै उरधार ॥ ६ ॥ कर्मनाशि शिव जाय वसे प्रभु ऋपभेश्वर से पहले जान । अष्ट गुणादित मिद्ध शिरोमणि जगदीश्वर पद लयो पुमान || वीरव्रती वीराग्रगन्य प्रभु वाहुवली जगधन्य महान । वीरवृत्ति के काज जिनेश्वर नम सदा जिन विम्ब प्रमान ॥ १० ॥ दोहा - श्रवणबेलगुल विध्य गिरि जिनवर बिब प्रधान ।
परसार ।।
सन्तावन फुट उत्तङ्ग तनो खडगासन अमलान ॥ २ ॥ अतिशयवन्त अनन्त बल धारक बिब अनूप 1 अर्ध चढ़ाय नमों सदा जै जै जिनवर भूप ॥ २ ॥
ॐ ही वर्तमानावसर्पिणी समये प्रथम मुक्तिस्थान प्राप्ताय कर्मारि विजयी वीराधिवीर वीराग्रणी श्री बाहुबलि स्वामिने अनर्घपद प्राप्ताय महार्घं निर्वपामीति स्वाहा ।
इत्याशीर्वाद. |
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