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रून पूजा पाठ रामद
कुसुमलता छन्द। जै जै जै जगतार शिरोमणि भत्रिय वश अशस महान । न जै जै जग उन हितकारी दीनो जिन उपदेश प्रमाण ॥ जैसे पति मुन जिनके शत सुत जेष्ठ भरत पहिचान । * श्री ऋषभदेव जिनसों जयवन्त सदा जगजान ॥९॥ जिनके द्वितीय महादेवी मुधि नाम 'सुनन्दा गुण की सान । रुप शोर, सम्पन्न मनोहर तिनके सुत मुजवली महान ॥ सवापदा शत धनु उन्नत तनु हरितवरण शोभा असमान । वहरसमणि पर्वत मानो नील कुलाचल सम घिर जान ॥२॥. तेजवन्त परमाणु जगत में तिन कर रपो शरीर प्रमाण । रान योरत्व गुणाफर जाको निरसत हरि हरप उर आन । धीरज अतुल यस सम नीरज सम वीरामणि अति पलवान । जिन एरि लम्पि मनु शशिछपि लाले फुसुमायुध लीनों मु पुमान ॥३॥ चाल समे जिन याल पन्द्रमा शशि से अधिक धरे दुतिसार । तो गुरुदेव पढाई विद्या शम्न शाम्न मद पढी अपार ॥
पमदेव ने पाटनपुर के नृप कीने भुजवली कुमार। दई अयोध्या भरतेश्वर को आप बने प्रमुजी अनगार ॥ ४ ॥ राजकाज पटवण्ड महीपति सव दल ले चढि आये आप! बाहुबलि भी मन्मुस आये मन्त्रिन तीन युद्ध दिये थाप ।। , रष्टि नीर अर मस्ट युद्ध में दोनों नृप कोनो बल धाप । , पृथा हानि रुक जाय सैन्य की या लडिये आपों-आप ॥ ५॥
मरत भुजवळी भूपति भाई उतरे समर भूमि में जाय । रष्टि नीर रण थके पक्रपति मल्लयुद्ध तव करो अपाय ।।