________________
जैन पूजा पाठ सप्रह
हरिहर चक्रपति सुर दानव मानव पशु बस याकै । तिहि मकरध्वज नाशक जिनको पूजो पुष्प चढ़ाकै ॥ परम० कामवारादिध्व सनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा । ४६
ॐ ही श्री
दुःखद त्रिजग जीवन को अतिही दोष क्षुधा अनिवारी । तिहि दुःख दूर करन को चरुवर ले जिन पूज प्रचारी ॥ परम०
ॐ ही श्री
चारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा । ५
७०
मोह महातम मे जग जीवन शिव मग नाहिं लखावै ।
तिहि निरवारण दीपक करले जिनपढ़ पूजन श्रावै ॥ परम० मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ६६ ॥
ॐ ह्री श्री
उत्तम धूप सुगन्ध बना कर दश दिश में महकावै । दश विधि बन्ध निवारण कारण जिनवर पूज रचावै ॥ परम० श्रष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
ॐ ही श्रो
सरस सुवरण सुगन्ध अनूपम स्वच्छ महाशुचि लावै । शिवफल कारण जिनवर पद की फलसो पूज रचावै ॥ परम० मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥
ॐ ह्री श्री
वसु विधिके वश वसुधा सबही परवश अति दुःख पावै । तिहि दुःख दूर करन को भविजन अर्घ जिनाग्र चढ़ावै ॥ परम० अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
ॐ ह्री श्री
जयमाला. दोहा ।
आठ कर्म हनि आठ गुण प्रगट करे जिन रूप । सो जयवन्तो भुजवली प्रथम भये शिव भूप ॥