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बेन पूजा पाठ सह
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प्रति प्रतिमा इन्द्र सडे दुओर, कर घंवर धरै प्रभु भक्ति नोर ।। आज बाज खडी देवी द्वार, पद्मावती चक्रेश्वरी सार । कर द्वादश भुजि हधियार धार, मानहुँ निन्दक नहिं आवें हार ।। ताफे दक्षिण चली गुफा आय, सतवसरा है ताको कहाय । तामें चौपीसी पनी मार, अरु प्रय प्रतिमा सय योग धार ।। सबमें हरि चमर सु घरहि हाथ, नित आय भन्य नावहिं सु माय । ताके ऊपर मन्दिर विशाल, देखत भविजन होते निहाल ।। सा दक्षिण टूटी गुफा आय, तिनमें ग्यारह प्रतिमा सुहाय । 'पुनि पर्वत के अपर सु जाय, मन्दिर दीरय मन को लुभाय ।। तामें प्रतिमा मगवान जान, सद्गासन योग धरै महान । ले अट द्रव्य तनु पूज्य कीन, मन वच तन करि मम धोक दीन । मपो जन्म मफल अपनो सु भाय, दर्शन अनूप देसो जिनाय । जय अष्ट-फर्म होंगे जु चर, जात मुख पाहें पूर-पूर ।। पूरब उत्तर द्वय निज सु धाम, प्रतिमा खड्गासन अति महान । दर्शन करके मन शुद्ध होय, शुभ वन्ध होय निश्चय जु जोय ।। पुनि एक गुफा में विम्मसार, ताको पूजन कर फिर उतार । पुनि और गुफा खाली अनेक, ते हैं मुनिजन के ध्यान हेत ।। पुनि चल कर उदयगिरि मुजाय, भारी-भारी जु गुफा लखाय । इक गुफा माहि जिनराय जान, पद्मासन धर प्रभु करत ध्यान ।। जो पूजत है मन वचन काय, सो भव-भव के पातक नशाय । तिनमें इक हाथी गुफा जान, प्राचीन लेस शोभे महान ॥ महागन खारवेल नाम जास, जिनने जिनमत का किया प्रकाश । बनवाई गुफा मन्दिर अनेक, अरु करी प्रतिष्ठा भी अनेक ॥