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बेन पूजा पार
इसका प्रमाण वह शिलालेस, बतलाता है जैनत्व एक। प्रारम्भ लेख में यह पसान, सिद्धों को वन्दन अरु प्रणाम ।। स्वस्तिकका चिद्ध विराजमान, जो जन-धर्म का है महान । मथुरापति से उन युद्ध कीन, प्रतिमा आदीवर फेर तीन ॥ तालाप, कूप, वापी अनेक, सुदवाई उन कर्तव्य पेत। रानी भी दानी पी विशेप, बनवाई गुफा उनने अनेक॥ पुनि और गुफा मे लेख जान, पढते जिनमत मानत प्रधान । तहं जसरथ नृप के पुत्र आय, मुनि मंग पाच सौ मी लहाय ॥ उप पारद विधि का यह करन्त, वाईम परीपह वह सहन्त । पुनि समिति पञ्च युत चलें सार, छ्यालीस दोष टल कर अहार ॥ इस विधि तप दुदर करत जोय, सो उपजे केवलज्ञान सोय। सन इन्द्र आज अति भक्ति घार, पूजा कानी आनन्द घार ।। धर्मोपदेश दे भव्य तार, नाना देशन में कर विहार । पुनि आये याही शिखर धान, सो ध्यान योग्य माना महान ॥ भये सिद्ध अनन्ते गुणन ईश, तिनके युग पद पर घरत शीन । तिन सिइन को पुनि-पुनि प्रणाम, जिन मुख अविचल माना सुधाम।। घन्दत भव दुःख जावे पलाय, सेवक अनुक्रम शिवपद लहाय । पूजन करता हूँ मैं त्रिकाल, कर जोड़ नमत है "मुन्नालाल" || उदयागिरि क्षेत्रं अतिसुख देतं, तुरतहि भवदधि पार कर। जो पूजे ध्यावे कर्म नसावे, वांछित पावे मुक्ति वरं ॥ ___ ही धी खप्रगिरि सिरक्षेत्रेभ्यो जयमाला नियंपामोति स्वाहा । दोहा-श्री खण्डगिरि उदयगिरि, जो पूजे काल । पुत्र पौत्र सम्पति लहे, पावे शिव सुख हाल॥
इत्याशीर्षाद ।