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जैन पूजा पाठ संग्रह
लाडू घेवर शुचि ल्याय, प्रभु पद पूजन को। धरूं चरणन ढिग आय, मम क्षधा नाशन को॥ श्री० ॥ *ही श्री अण्डगिरि सिद्धक्षेत्रेभ्यो सुधारोगाधनाशनाय नेवेद्य निवपामीति म्वाहा ॥ ५ ॥ ले मणिमय दीपक थार, दोय कर जोड धरो। मम मोह अन्धेर निरवार, ज्ञान प्रकाश करों ॥ श्री० ॥ ॐही श्री सागिरि सिमक्षेत्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीप नियंपामीति म्वाहा ॥६॥ ले दशविधि गन्ध कुटाय, अग्नि मझार धरों। मम अष्ट-कर्म जल जांय, यातें पांय परों ॥ श्री० ।। ॐ ह्रीं श्री खण्ड गिरि सिद्धक्षयम्यो अष्टकर्म विनाशनाय धूप निवपामीति स्वाहा ॥ श्रीफल पिस्ता सु बदाम, आम नारंगि धरूं । ले प्रासुक हिम के थार, भवतर मोक्ष वरूं ।। श्री०॥ ॐ ही श्री खण्डगिरि सिसक्षेत्रभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फल निवपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ जल फल वसु द्रव्य पुनीत, लेकर अर्घ करूं। नाचं गाऊ इह भांत, भवतर मोक्ष वरूं ।। श्री०॥ ॐ ही श्री खण्डगिरि सिसप्रेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अध्यं निवपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
जयमाला। दोहा- देश कलिंगके मध्य है, खण्डगिरि सुखधाम ।
उदयागिरि तसु पास है, गाऊँ जय जय धाम ॥ श्रीसिद्ध खण्डगिरि क्षेत्र जान, अति सरल चढाई तहा मान । अति सघन वृक्ष फल रहे आय, तिनकी सुगन्ध दशदिश जु जाय ॥ ताके सु मध्य में गुफा आय, नव मुनि सुनाम ताको कहाय । तामें प्रतिभा दशयोग धार, पद्मासन है हरि चवर डार ।। ता दक्षिण दिश इक गुफा जान, तामें चौबीस भगवान मान ।