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जन पूजा पाठ संग्रह
अथाष्टका
श्री खण्डगिरि क्षेत्र पूजा
दोहा अंगवंग के पास है देश कलिंग विख्यात । तामें खण्डगिरि लसत है, दर्शन भव्य सुहात । दसरथ राजा के सुत अति गुणवान जी।
और मुनीश्वर पञ्च सैंकड़ा जान जी ॥ अष्ट-कर्म कर नष्ट मोक्षगामी भये। तिनके पूजहुँ चरण सकल मंगल ठये॥ ॐ ही श्री कलिंगदेशमध्ये खण्डगिरि सिवरेत्र से सिद्धपद प्राप्त दशरय राजा के सुत सया पञ्चशतक मुनि ! अत्र अवतर भयतर संवौषट् आहानन । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । अत्र मम सनिहितो भव भष षषट् सनिघापनम् । .
अति उत्तमशुचि जल ल्याय, कञ्चन कलश भरा। करूं धार सु मन वच काय, नाशत जन्म जरा॥ श्री खण्डगिरि के शीश जसरथ तनय कहे । मुनि पञ्चशतक शिव लीन देश कलिंग दहे। ही श्री खण्डगिरि सिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युपिनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ केशर मलयागिरि सार, घिसके सुगन्ध किया। संसार ताप निरवार, तुम पद वसत हिया ॥ श्री०॥
ही श्री खण्डगिरि सिद्धक्षेत्रेभ्यो ससारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ मुकाफल की उन्नमान, अक्षत शुद्ध लिया। मम सर्व दोष निरवार, निजगुण मोह दिया ॥श्री०॥ ॐ हाँ श्री खण्डगिरि सिनोत्रेम्पो मक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्याहा ॥ ३ ॥ ले सुमन कल्पतरु थार, बुन-चुन ल्याय धरूं। तुम पद लिंग धरतहि, पाण काम समूल हरूं॥ श्री०॥ ॐ ही श्री खण्डमिरि सिसक्षेत्रेम्यो कामषाणषिध्यशनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥
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