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बेन पूजा पाठ सम्ह
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अथ जयमाला ।
दोहा - सोनागिरिके शीश पर, जिन-मन्दिर अभिराम । तिन गुणकी जयमालिका, वर्णत 'आशाराम ' ॥१॥
एड्डी छन्द ।
गिरि नीचे जिन मन्दिर सुचार, ते यतिन रचे शोभा अपार । तिनके अति दीरघ चौक जान, तिनमे यात्री भेलें सु आन ॥ २ ॥ गुमटी छज्जे शोभित अनूप, ध्वज पद्धति सोहैं विविध रूप | चसु प्रातिहार्यं तहां घरे आन, सब मङ्गल द्रव्यन की सुखान ॥ ३ ॥ दरवाजों पर कलशा निहार, करजोर सु जय जय ध्वनि उचार | इक मन्दिरमं यति राजमान, आचार्य विजय कीर्ति सुजान ॥ ४ ॥ तिन शिष्य भागीरथ विबुध नाम, जिनराज भक्ति नही और काम। अन पर्वत को चट चलो जान, दरवाजो वहा इक शोभमान ॥ ५ ॥ तित ऊपर जिन प्रतिमा निहार, तिन वंदि पूज आगे सिधार । तहां दुःखित भुखित को देत दान, याचक जन जहां हैं अप्रमाण ||६|| आगे जिन मन्दिर दुहुँ ओर, जिन मान होत वादित्र शोर । माली बहु ठाडे चौक पौर, ले हार कलङ्गी तहां देत दौर ॥ ७ ॥ जिन यात्री तिनके हाथ मांहि, वखशीस रीझ त देत जाहिं । दरवाजो तहा दूजो विशाल, तहां क्षेत्रपाल दोउ ओर लाल ॥ ८ ॥ दरवाजे भीतर चौक मांहि जिन भवन रचे प्राचीन आहिं । तिनकी महिमा चरणी न जाय, दो कुण्ड सुजलकर अति सुहाय ॥६॥ जिन मन्दिर की वेदी विशाल, दरवाजे तीनों बहु सु ढाल । ता दरवाजे पर द्वारपाल, ले मुकुट खड़े अरु हाथ माल ॥ १० ॥