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जेन पूज पाठ सप्रह
दशविध धूप अनूप अनि भाजन मे डालो। जाकी धूप सुगन्ध रहे भर सर्व दिशालों ।। सोनागिरि के शोश पर जेते सब जिनराज ।
धूप कुम्ल आगे धरो, कम दहन के काज ॥ ॐ ह्रीं श्री सोनागिरि नेवाणक्षेत्रेभ्यो अष्टकमविध्वशनाय धूप निवपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
उत्तम फल जग माहि बहुत मीठे अरु पाके । अमित अनार अवार आदि अमृत रस छाके। सोनागिरि के शीश पर, जेते सब जिनराज ।
उत्तम फल तिनको मिले, कर्म विनाशन काज ।। ॐ ही श्री सानानिवि निवाणक्षेत्रभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फल निवपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ दोहा - जल आदिक वसु द्रव्य अर्घ करके धर नाचो।
वाजे बहुत वजाय पाठ पढ़ के सुख सांचो । सोनागिरि के शीश पर, जेते सब जिनराज।
ते हम पूजे अर्घ ले, मुक्ति रमण के काज ।। ॐ हीं श्री सोनागिरि निवाणक्षेत्रेभ्यो अनर्थ्यपदप्राप्तये अध्यं निवामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
अडिल बन्द । श्री जिनवर की भक्ति सु जे नर करत है। फल वांछा कुछ नाहि प्रेम उर धरत है। ज्यों जगमाहि किसान सु खेती को करें । नाज काज जिय जान सु शुभ आपहि झरें । ऐसे पूजादान भक्ति यश कीजिये।
सुख सम्पति गति मुक्ति सहज पा लीजिये। ॐ ह्री श्री सोनागिरि निर्वाणक्षेत्रेभ्यो पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा। '