________________
जैन पूजा पाठ सग्रह
जोर ॥१६॥
थाय ।
सो पूजनीक वह थान जान, चन्दत जन तिनके पाप हान | तह मु बहत्तर कोड और, मुनि सात शतक सब कहे उस पर्वतों सब मोक्ष पाय, सव भूमि सु पूजन योग्य तहां देश-देश के भव्य आय, वन्दन कर बहु आनन्द पाय ॥२०॥ पूजन कर कीने पाप नाश, बहु पुण्य बंध कीनो प्रकाश । यह ऐसो क्षेत्र महान जान, हम करी चन्दना हर्ष ठान ॥२१॥ उनईस शतक उनतीस जान, सम्वत् अष्टमि मित फाग मान । सब सग सहित वन्दन कराय, पूजा कीनी आनन्द पाय ||२२|| अव दुःख दूर कीजै दयाल, कहें 'चन्द्र' कृपा कीजे कृपाल | मैं अल्पबुद्धि जयमाल गाय, भवि जीव शुद्ध लीज्यो बनाय ||२३|| तुम दयाविशाला सव क्षितिपाला, तुमगुणमाला कण्ठ धरी । ते भव्य विशाला तज जगजाला, नावत भाला मुक्तिवरी ॥
घत्ता ।
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो नहाएं निर्वपामीति स्वाहा ।
१५२
चारित्र
आत्मा के स्वरूप में जो चर्या है उसी का नाम चारित्र है, वही वस्तु का स्वाभाविक धर्म है ।
■ सयम का पालन करना कल्याण का प्रमुख साधन है ।
■ ससार में वही जीव नीरोग रहता है, जो अपना जीवन चारित्र पूर्वक बिताता है ।
■ उपयोग की निर्मलता हो चारित्र है ।
-
'वर्णी वाणी' से