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भी पावापुर सिद्धक्षेत्र पूजा
जिहि पावापुर छित अघाति, हत सन्मति जगदीश । भये सिद्ध शुभधान सो, जजों नाय निज शीश ॥
ॐ हो श्री दावापुर सिद्धक्षेत्र ! स्वतर स्वतर संवोधट् श्राननं । ॐ ही प्रो पावापुर सिद्धक्षेत्र ! पति विस्थापन । ॐ श्री पावापुर निक्षेत्र ! मम सहितो व भव अथाष्टक, गोता छन्द |
शुचि सलिल शीतौ कलिलरीतौ श्रमण चीतौ लै जिसो । भर कनक भारी त्रिगद हारी, दै त्रिधारी जित तृषो ॥ वर पदावर भर पद्म सरवर, वहिर पावा ग्राम ही । शिवधाम सन्मत स्वामी पायो, जजों सो सुखदा नही || श्रीपाधापुर भ्यो वनाथ जिनेन्द्राय जन्ममृत्युरोगविनाशनाय जलं० ॥२॥ भव भ्रमत भ्रमत शर्मा तपकी, तपन कर तप ताइयो । तसु बलय-कन्दन मलय-चन्दन, उदक सग घिसाइयो || वर० पावापुर सिद्धक्षेत्रे दोन नेिन्द्राय समारतापविनाशनाय चन्दनं० ॥२॥ तन्दुल नवीन अखण्ड लीने, ले महीने ऊजरे । मणिकुन्द इन्दु तुषार द्युति जित, कनक- रकाबी में धरे ॥ वर पावापुर सिद्धक्षेत्रेभ्यो वन निन्द्रा पदप्राप्तये अक्षत० ॥ ३ ॥
मकरन्दलोभन सुमन शोभन सुरभि चोभन लेय जी । मद समर हर वर अमर तरुके, घ्राण हग हरखेय जी ॥ वर० श्री पावापुर सिद्धक्षेत्रेभ्यो वीरनाथ जिनन्द्राय कामवासविध्वसनाय पुष्प० ॥ ४ ॥ नैवेद्य पावन छुध मिटावन, सेव्य भावन युत किया । रस मिष्ट पूरित इष्ट सूरति, लेयकर प्रभु हित हिया || वर० ॐ ही श्री पावापुर सिद्धक्षेत्रेभ्यो वोरनाथ जिनेन्द्राय सुधारोगविनाशनाय नैवेद्य ० ॥ ५ ॥
वषट् सत्रिधापनं 1