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________________ १५. जैन पूजा पाठ सप्रह हरि समवशरण तब कीना, हम पूजत इत सुख लीना॥ ___ ॐ ही आश्विनशुजाप्रतिपदि क्वलज्ञानप्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिने द्राय अध्य० । सित अष्टमी मास अषाढ़ा, तब योग प्रभू ने छाड़ा। जिन लई मोक्ष ठकुराई, इत पूजत चरणा साई । ही आपाढशुरूपयो मोक्षमालपाप्ताय श्री नेमिनाय जिनेद्राय अप० । __ अडिल्ल छन्द । कोडि बहत्तरि सप्त सैकड़ा जानिये। मुनिवर मुक्ति गये तहत सु प्रमाणिये ।। पूजो तिनके चरण सु मनवचकायकैं। वसुविध द्रव्य मिलाय सुगाय वजायकैं। दोहा- सिद्धक्षेत्र गिरिनार शुभ. सब जीवन सुखदाय । कहों तासु जयमालिका, सुनतहि पाप नशाय ॥१॥ पद्धडी छन्द! जय सिद्धक्षेत्र तीरथ महान, गिरिनारि सुगिरि उन्नत बखान । तहँ जनागड है नगर सार, सौराष्ट्र देश के मधि विधार ॥ २ ॥ विस जूनागढ से वले सोइ, समभूमि कोस वर तीन होइ । दरवाजे से चल कास आध, इक नदी वहत है जल अगाघ ॥ ३ ॥ पर्वत उत्तर दक्षिण सु दोय, मधि वहत नदी उज्वल सु तोय । ता नदी मध्य इक कुण्ड जान, दोनों तट मन्दिर बने मान ॥४॥ तह वैरागी वैष्णव रहाय, भिक्षा कारण तीरथ कराय। इक कोसतहां यह मच्चोख्याल,आगें इक वर नदी वहत नाल ॥५॥ तहँ श्रावकजन करते सनान, घो द्रव्य चलत आगें सु जान । फिर मृगीकुण्ड इक नाम जान, तहा वैरागिन के बने थान ॥६॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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