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शीघ्रहि अर्ज सुनो जिनजी मम कर्ममहावन देउजराई ॥ नेमि० ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिसचेत्रेभ्यो मष्टकर्मविध्वसनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥
ले फल सार सुगन्धमई, रसना हृद नेत्रनको सुखदाई । क्षेपतहों तुम्हरे चरणा प्रभु देह हमें शिवकी ठकुराई ॥ नेमि०
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥
ले वसु द्रव्य सु अर्ध करों घर थाल सु मध्य महा हर्षाई । पूजत हों तुमरे चरणा हरिये वसु-कर्मबली दुःखदाई ॥ नेमि०
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो अनर्थपदप्राप्तये अप्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥
दोहा - पूजत हों वसुद्रव्य ले, सिद्धक्षेत्र सुखदाय । निज हितहेतु सुहावनो, पूरण अर्ध चढ़ाय ॥
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो पूर्णार्धम् निर्वपामीति स्वाहा । पञ्चकल्याणक अर्ध, छन्द पाइता ।
कातिक शुक्ला की छठ जानों, गर्भागम ता दिन मानो । उत इन्द्र जर्ज उस थानी, इत पूजत हम हर्षानी ॥
ॐ ह्रीं कार्तिकशुकाट्यां गर्भमतल प्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य ० ।
भावण शुक्ल छठ सुखकारी, तब जन्म महोत्सव धारी । सुरराज सुमेर न्हवाई, हम पूजत इत सुखपाई ॥
ॐ ह्रीं श्रावणायां जन्ममालमण्डिताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अय० ।
सित श्रावणकी छट्टि प्यारी, ता दिन प्रभु दीक्षा धारी । तप घोर वीर तह करना, हम पूजत तिनके चरणा ॥
ॐ ही श्रावणशुक्रमष्टी दिने दीक्षामङ्गलप्राप्ताय श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय अध्यं • •
सूक्ष्म शुक्ल आश्विन भाषा, तब केवल ज्ञान प्रकाशा ।