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जैन पूजा पाठ सप्रह
अष्टक, कवित्त |
लेकर नीर सु क्षीर समान महा सुखदान सु प्रासुक लाई । दे त्रय धार जजों चरणा हरना मम जन्म जरा दुःखदाई ॥ नेमिपती तज राजमती भये वालयती तहत शिवपाई । कोड बहत्तर सातसौ सिद्ध मुनीश भये सुजजों हर्पाई ॥
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाये जल निर्वपामीति स्वाहा ||१||
चन्दनगारि मिलाय सुगन्ध सु, ल्याय कटोरी में धरना । मोहमहातम मेटनकाज सु चर्चतु हों तुम्हरे चरना ॥ नेमि०
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो ससारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥
अक्षत उज्ज्वल ल्याय धरों, तह पुंज करो मनको हर्पाई । देहु अखयपद प्रभु करुणा कर, फेर न या भववास कराई ॥ नेमि०
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्ध क्षेत्रेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्याहा ॥ ३ ॥
फूल गुलाब चमेली बेल कदंव सु चम्पक वीन सु ल्याई । प्राशुकपुष्प लवंग चंद्राय सु गाय प्रभू गुण काम नसाई ॥ नेमि
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो कामवाण विध्वसनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥
नेवज नव्य करों भर थाल सु कंचन भाजनमें घर भाई । मिष्ट मनोहर क्षेपत हों यह रोग क्षुधा हरियो जिनराई ॥ ति०
ॐ ह्रीं श्री गिरनार 'सिद्धक्षेत्रेभ्यो क्षुधारोगविनामनाय नैत्रेय निर्वपामीति खाहा ॥ ५ ॥
दीप बनाय धरों मणिका अथवा घृत वाति कपूर जलाई । नृत्य करोंकर आरति ले मम मोह महातम जाय नशाई ॥ नेमि
ॐ ह्रीं श्री गिरनार सिद्धक्षेत्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
धूप दशांग सुगन्धमई कर खेबहु अग्नि मकार सुहाई ।