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________________ मन पुमा पास १४७ भी गिरनार सिद्धक्षेत्र पूजा दोहा-वन्दी नेमि जिनेश पद, नेमि-धर्म दातार । नेम धुरन्धर परम गुरु, भविजन सुख करतार । जिनवाणीकोप्रणमि कर गुरु गणधर उरधार । सिद्धक्षेत्र पूजा रचों, सब जीवन हितकार । ऊर्जेचन्त गिरिनाम तस, कायो जगत विख्यात। गिरिनारी तासों कहत, देखत मन हात ।। पिलंदिरा सपा सुन्दरी बन्द ।। गिरि सु उन्नत सुभगाकार है, पञ्चकूट उत्तंग सुधार है। वन मनोहर शिला सुहावनी, लखत सुन्दर मनको भावनी॥ अवर कूट अनेक बने तहां, सिद्ध धान सु अति सुन्दर जहां। देखि सरिजन मन हर्पावते. सकल जन वंदनको आवते॥ तह नमसाग त तप धारा, कर्म विदारा शिव पाई। मुनि कोटि बहत्तर सात शतक धर तागिरि ऊपर सुखदाई।। है शिवपुरबासी गुणके राशी विधि थिति नाशी द्धिधरा। तिनके गुण गाऊँ पूज रचाऊँ, मन हर्षाऊँ सिद्धि करा॥ दोहा-सो क्षेत्र महान तिहिं. पूजों मन वच नाय । वय वार जु कर थापना, तिष्ठ तिष्ठ इत आय ॥ ही भी गिरनार मित्र धन भरतर प्रपतर गपोपट । नधी गितार मित्राय सिप्छा तिप्टन मठ स्थापन । भी सिरनार सियय । अन मम सन्निदितानि भप भय पपट ।
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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