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रसद
श्री वासुपूज्य तिन चाल, बादाम तीर्षका विशाल ॥ भन भोग देहत विश्न- होय, वय बाल्नाहि ही नाय नोय । सिड्न ननि महान मार तीन, तप हाइन्न विष उपोष चीन ॥ तह मोन उत्रय आय ह. इन प्रति पूई ही क्ष्य रह । अं अन्न आह होय, गुरु नान नाग नदनाहि सोय । सोलह बस इस पद न शक इस इम इन कर रहय । पुनि सनयान क लोम् दारहाइमन्यान सोलह द्विारा हे अनन्तु तुष्टय यूज स्वाल पायो ३ सुखद नयोग वान.! तह काल गिोचर सम्या सुमरन हि जन्य इजनहित्य ।।
जाल दुवित्र र अनिय कृष्ट. जर पोरे भविमाने धान्य दृष्टी इङ्ग कल आप की जान. जिन गोगन की नुचि दान ।। ताही धस ते जिवघ्यान ब्णय, मुनसनयान निवसे जिताय । ह भ नलए नहर. तो जु बसचा तिपहि पनि । तेरह न रन सनय द्वार, कार श्री जगन्दर प्रहार । इसनि अवनीश अन्य नदि, विवो पार निः चल ऋद्धि । युन गु बनु र अमित गुप्लेन है हे ना ही उनहि बैन । तुम्ही में सो पाना पवित्र, त्रैलोन्य गायो निवित्र ॥ ने वतु रज निज तक लाय. बन्दौं पुनि पनि मुवि होस नाय ! ताही पर वांडा उर मार. घर अन्य बाह बुद्ध बिडार।
दोहा श्रीचन्पापुर जो पुल्प. पूजे सन वच काय ! वगिल तो पाय ही, सुख सम्पति अधिनाय !!