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१४.
जैन पूजा पाठ सह
शुकल षाढ़ सप्तमि दिवस शेष कर्म हनि मोक्ष । शिव कल्याण सुरपति कियो जजू चरण गुण धोन्त ।। नेमनाथ जिन सिद्ध भये सिद्ध क्षेत्र गिरनार ।
मन वच तन कर पूज हूँ भवदधि पार उतार ॥ ॐ ही श्री गिरनार सिद्धक्षेत्र परवत सेतो अषाढ़ सुनी साते को प्री नेमिनार तीर्घवरादि बहत्तर कोड़ सात से मुनि मुक्ति पधारे, पर्य० । दोहा—कार्तिक वदि मावस गये शेष कर्म हनि मोक्ष ।
पावापुरते वीर जिन जजू चरण गुण धोक ॥ महावीर जिन सिद्ध भये पावापुर से जोय ।
मन वच तन कर पूजहूं शिखर नमूं पद दोय ॥ - ही श्री पावापुर सिद्धक्षेत्र परक्त सेतो कार्तिक दो ममावत को श्री वर्द्धमान तीर्यकरादि पसंख्य मुनि मुक्ति पधारे, अर्घo 1 दोहा—सुधर्मादि गणेश गुरु अन्तिम गौतम नाम ।
तिन सबकू लै अर्घ तै पूजू सब गुण धाम || . • हो श्री सुधर्मादि गौतम गणधर देव गुरावा ग्राम के उद्यान आदि भित्र-भित्र स्थानो से निरवारा पधारे, जर्घ० । दोहा—या विधि तीर्थ जिनेश के बन्दू शिखर महान ।
और असंख्य मुनीश जे पहुंचे शिवपद थान ॥ सिद्ध क्षेत्र जे और हैं भरत क्षेत्र के मांहि । और जे अतिशय क्षेत्र हैं कहे जिनागम मांहि ॥