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हैन पूजा पाठ मह
हो विश्वसेनके नन्द्र भले गुणगावत हैं तुमरे हरपाये ॥ १ ॥ दोहा - केकी-कंठ समान छवि, वपु उतंग नत्र हाथ । लक्षण उरग निहारपग, बन्दों पारसनाथ ॥२॥
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पद्धरि छन्द । रची नगरी छः मात अगार बने चहँगोपुर शोभ अपार । कोटवनी रचना छात्र देव, कंगूरन लह बहुकेत ||३|| बनारस की रचना जु अपार, करी बहुभांति धनेश तयार | तहां विश्वसेन नरेन्द्र उदार, करें सुख नाम सु दे पटतार ||४|| राज्यो तुम प्राणत नाम विमान, भवे तिनके वर नन्दन आन । त सुरइन्द्र नियोगन आय, गिरिन्द की विधिन्हौन तुजाय ॥५॥ पिता-घर नौपि गये निज धाम, कुबेर करें वसु जाम मुकाम | चढै जिन दोज मयंक समान, रमैं बहु बालक निर्जर आन ||६|| भये जय अष्टम वर्ष कुमार, घरे अणुव्रत महासुखकार । पिता जब आन करी अरदास करो तुम व्याह वरें मम आस ||७||
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करी तब नाहि कहे जगचन्द्र, किये तुम काम कषाय जु मन्द । चढ़े राज राजकुमारन सग, तु देखत गंगवनी सु तरंग ॥८॥ लख्यो इक रंक करै तप घोर, चहूदिशि अगनि बलें अति जोर | कहें जितना अरे तुन भ्रात, करे बहु जीवनकी मत घात ॥ ६ ॥ भयो तब कोप कहे कि जीव, जले तर नाग दिखाय सजीव । लख्यो यह कारन भावन भाव, नये दिव ब्रह्म ऋषीस आय ||१०||