SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैन पूजा पाठ समह ९९ दुख-धाम-काम विनाश मेरो, जोर कर विनती करौं ॥स० ॐ ही श्री चतुविशतितीर्थक्र निवाणक्षेत्रेभ्यो पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ नेवज अनेकप्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरौं । यह भूख-दुखन टार प्रभुजी, जोर कर विनती करौं ॥स० ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशतितीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ दीपक प्रकाश उजास उज्ज्वल, तिमिरसेती नहिं डरौं । संशय-विमोह - विभरम-तम-हर, जोर कर विनती करौं ॥स० ॐ ही श्रीचतुविशतितीर्थंकर निर्वाक्षेत्रेभ्यो दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ शुभ - धूप परम अनूप पावन, भाव पावन आचरौं । सब करम- पुञ्ज जलाय दीज्यो, जोर कर विनती करौं ॥ स० ॐ ह्रीं श्रीचतुविशतितीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ बहु फल मंगाय चढ़ाय उत्तम, चार गतिसों निवरों । निहचें मुकति-फल देहु मोको, जोर कर विनती करौं ॥स० ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशतितीयंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ जल गन्ध अक्षत पुष्प चरु फल, दीप धूपायन धरों । 'द्यानत' करो निरभय जगतसों, जोर कर विनती करौं ॥ स ॐ ह्रीं श्रीचतुविशतितीर्थंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो अव निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९ ॥ जयमाला दोहा श्रीचौबीस जिनेश, गिरि कैलाशादिक नमों । नीरथ महाप्रदेश, महापुरुष निरवाणतें ॥
SR No.010139
Book TitleSanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy