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१७.
छठा सर्ग
पश्चात् स्वामिनी की अनुमतिपा बैठी हो निर्भीक सभी।
औ' लगीं खोजने जिज्ञासारखने का अवसर ठीक सभी ।
चुप उन्हें देख कर 'त्रिशला' ने, निज मौन स्वयं ही भंग किया । संकोच त्याग सब कहने का उनको उपयुक्त प्रसंग दिया ।
बोलीं-"प्रश्नों के करने में, तुम नहीं कदापि प्रमाद करो। भय की कोई भी बात नहीं, तुम निर्भय सब सम्वाद करो ।।
कर सकती मैं हर शंका काभी समाधान सामोद यहीं। चातक की प्यास बुझा सकताक्या जल से पूर्ण पयोद नहीं !
यह बात असम्भव अाज कि अब, हो शान्त तुम्हारी प्यास नहीं । कारण हर शंका का उत्तर प्रस्तुत है मेरे पास यही ॥