________________
परम ज्योति महावीर
मेरे समीप में रहतीं जो, उसका कुछ तो उपयोग करो। अवकाश काल में तुम अभिनव, ज्ञानार्जन का उद्योग करो ॥
कारण, सहचारियो ? मत् चर्चा से है अतीव अनुराग मुझे । एवं विशेषतः रुचता है, गोष्ठी में लेना भाग मुझे ॥
अतएव तुम्हारी जिज्ञासामें होगा गति-अवरोध नहीं । तब तक तुमको समझाऊँगी, जब तक कि तुम्हें हो बोध नहीं |
चाहे तुम जितने प्रश्न करो, श्रायेगा मुझको रोष नहीं । स्वयमेव तुम्हें मम उत्तर मे
हो जायेगा परितोष यहीं ॥ 'त्रिशला' के इस आश्वासन से उनके अन्तस् की लाज गयी। यों तो पहिले से प्रस्तुत ही-- थीं दिक्कुमारियाँ श्राज कई ॥