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परम ज्योति महावीर
यों सुलभ वस्तुएँ भोगों औ' उपभोगों के उपयुक्त सभी। अब और बताऊँ क्या-क्या ? होपातीं न यही उपभुक्त सभी ।।
कारण कि मुझे इन भोगों से अब आज अधिक अनुरक्ति नहीं। लगता है भोगाराधन तज, मैं करूँ जिनेश्वर-भक्ति यहीं ।।
इन नश्वर इन्द्रिय-विषयों में, अब रहा अधिक अनुराग नहीं । लगता कि धर्म में लीन रहूँ, तू राग रन में भाग नहीं ।।
बस, 'पार्श्वनाथ' का ध्यान करू, जगते सोते दिन रात सदा । दूं बिता उन्हीं के वन्दन में, हर सन्ध्या और प्रभात सदा ।।
अध्यात्मवाद के ग्रन्थों को पढ़ने में प्रायः लीन रहूँ। जीवन की एक घड़ी में भी, में नाय ! न संयमहीन रहूँ ।।