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परम ज्योति महावीर यदि भाव आपको मानें, तोअपने को कहती भाषा मैं । यदि आप किमिच्छिक दानी तो - हूँ याचक की अभिलाषा मैं ॥
यदि न्याय देवता आप प्रभो ! तो मैं हूँ पहिली भूल स्वयं ।। हृदयेश ! श्राप यदि पूजनीय,
तो मैं तब पद की धूल स्वयं ॥ यदि आप काम के रूप स्वयं, तो मैं उसकी प्रिय भूषा हूँ । यदि श्राप सुशील दिवाकर तो मैं लजाशीला उषा हूँ ॥
यदि आप इन्द्र-वक्षस्थल तो मन्दार-कुसुमकी माला मैं । राकेश श्राप यदि हैं तो हूँ,
रमणीय रोहिणी वाला मैं ।। अतएव धन्य वह पुण्योदय, जिसने यह योग मिलाया है। है धन्य कर्म भी वह जिसने, हमको अनुरूप बनाया है ।।