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परम ज्योति महावीर
___ यो निज विचार जब महिषी से
कह मौन हुये भूपाल स्वयं । तब उनका उत्तर देने को, रानी बोलीं तत्काल स्वयं ।।
"प्राणेश ! श्राप निष्कारण ही, क्यों मेरा मान बढ़ाते हैं ! क्यों व्यर्थ प्रशंसा कर मेरी, मुझको अत्यधिक लजाते हैं ?
बलवीर ! आपके तर्क प्रबल, एवं हूँ अबला बाला मैं । हे चतुर ! कहाँ से श्राप सदृश, पाऊँ चातुर्य निराला मैं ।
धामान् ! आपके सदृश मुझ वक्त त्व-कला का बोध नहीं । स्वामी के वचनों का दासी, कर सकती नाथ ! विरोध नहीं ।।
अतएव सोच में पड़ी हुई, तव सम्मुख अब क्या बोलूँ मैं ? जब हैं प्रसन्न स्वयमेव देव, क्यो अनुनय को मुख खोलें मैं !