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चौथा सर्ग
कोई आभरण मँजूषा ला, पहिनाती भूषण अङ्गों में । अत्यन्त दमकते थे जिनकेनग अपने अपने रजों में ?
कोई पहिनाकर शीश फूल, उनका शिर भाग सजाती थी। कोई पहिनाकर कर्णफूल, कों की कान्ति बढ़ाती थी।
कोई नासा में पहिनानेको नथ अविलम्ब उठाती थी । कोई उनके कमनीय कण्ठमें हीरक हार पिन्हाती थी।
कोई कमनीय भुजाओं में, भुज बन्ध बाँधती धीरे से। कोई कर में पहिनाती थी,
नव वलय जटित मणि हीरे से ।। कोई उनकी मृदु अंगुलियों में, पहिनाती स्वर्ण-अँगूठी थी । कोई कसने लगती उनकीकटि में मेखला अनूठी थी।