________________
परम ज्योति महावीर कोई तो सुरभित तैल लगा, मृदु केशावली भिगोती थी। कोई तो उनकी वेणी में, गंधा करती मणि मोती थी।
कोई उनके युग नयनों में, अञ्जन अभिराम लगाती थी। कोई नव माँग बना उसमें,
सिन्दूर ललाम लगाती थी। कोई झट लगा महावर ही, चरणों को लाल बनाती थी। कोई सौभाग्य-तिलक माथेपर भी तत्काल बनाती थी।।
कोई सतर्कता से उनकीठोड़ी पर तिल को लिखती थी। कोई उनके कर-पल्लव में, मिहदी ही रचती दिखती थी ।।
कोई साड़ी के अञ्चल में, अति सुरभित इत्र लगाती थी। कोई मुख मण्डल में सुरभित, सित चूर्ण पवित्र लगाती थी ।।