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परम ज्योति महावीर. पर कभी आपकी इच्छा के, विपरीत न निज मुख खोलेंगी। हर समय विनय में घुली हुई, मधुवाणी हम सब बोलेंगी।"
यो उनने त्रिशला देवी को, सूचित अपने उद्गार किये । सुन जिनको महिषो ने उनको परिचर्या के अधिकार दिये ||
यह स्वीकृति पाकर मुदित हुई वह दिक्कुमारियों की टोली । उस क्षण से उनकी सेवायोंका लक्ष्य बनी रानी भोली ।।
अब वे त्रिशला की सेवा में, करती थीं समय व्यतीत सभी । सिद्धार्थ-प्रिया को भी उनमें,
आलस्य हुवा न प्रतीत कभी ।। प्रत्येक कार्य के करने मेंउनका चातुर्य दिखाता था। मन में अभिलाषा करते ही, इच्छित पदार्थ श्रा जाता था ।।