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चौथा सर्ग
अभ्यस्त हमें हैं है कुशले !
प्रायः सच ललित कलाएँ भी । कण्ठस्थ न जाने हैं कितनी, कमनीय कथा कविताएं भी ॥
गार्हस्थ्य-शास्त्र
की ज्ञाता हम,
श्राता है हर गृह कार्य हमें । गृहणी के सारे कर्त्तव्योंको सिखा चुके श्राचार्य हमें ||
हम नयी प्रणाली
हैं गूँथ आप के
अविलम्ब सदा ही
कर सकतीं तव
से सकतीकेशों को ।
कार्यान्वित,
श्रादेशों को ॥
श्रतएव नियुक्त हमें अपनीसेवा में निस्सङ्कोच करें | हम पारिश्रमिक में क्या लेंगी ? इसका मत किंचित सोच करें ||
तव कृपा दृष्टि का पाना ही, है अलका पति का कोष हमें । जो श्राप स्नेह से दे देंगी, उससे ही होगा
तो हमें ||
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