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शोभामय सुन्दर शैली से,
हम शयनागार सजा सकतीं । नित नूतन बन्दनवार बना, हम हर गृह द्वार सजा सकतीं ||
अनुरूप सजावट कर सकतीं, पर्वों के विविध प्रसंगों पर । अति मुग्ध आप हो जायेंगी, सज्जा करने के ढंगों
पर ||
प्रिय लगें आपको जैसे भी,
सकती हम वैसे
हार बना ।
भूषण भी
प्रकार बना ||
सुमनों के सुन्दर
सकती है विविध
परम ज्योति महावीर
कह सकर्ती मन बहलाने को, प्रति दिवस नवीन पहेली भी । दासी भी बन कर रह सकतीं, रह सकतीं बनी सहेली भी ॥
इसके अतिरिक्त हमें स्वामिनि ! हे ज्ञात पाक विज्ञान सभी ।
सकतीं,
हम छप्पन भोग बना मिष्टान्न सभी पक्वान सभी ।।