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चौथा सर्ग
पश्चात् दिखा वह सागर भी कहता मुझसा गम्भीर महा । होगा गम्भीर विचारक सुत' मर्यादा पालक धीर महा ॥
इसके उपरान्त तुम्हें जो वह, सिंहासन दिखा निराला है। वह कहता पुत्र तुम्हारा वह, त्रिभुवन पति बनने वाला है ।।
जो देव विमान दिखा तुमको, उसका फल यही विचारा है। वह जीव तुम्हारे गर्भाशय - में सुर पुर त्याग पधारा है ।।
फिर नाग भवन जो देखा है. उसका भी अर्थ सुहाना है। उस सुत को तीनों ज्ञान लिये ही जन्म जगत में पाना है।
तदनन्तर तुम्हें दिखायी दी, जो रत्न राशि मनहारी है। वह सम्यक सूचित करती है सुत श्रेष्ठ गुणों का धारी है ।