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इसके उपरान्त
दिखी तुमको
जो पूर्णाकृति रजनीश कला ।
वह सूचित करती मोह- तिमिरको देगा वह योगीश जला ||
तदनन्तर
दिया दिखायी जो द्य ुति शाली दिव्य दिनेश स्वयं । वह कहता ज्ञान-प्रकाशन कर,
होगा वह सुत ज्ञानेश स्वयं ||
फिर मीन युगल भी जो तुमको, सपने में अपने पास दिखा । तुम समझो उसके छल से ही, सन्तति का भाग्य विकास दिखा ||
परम ज्योति महावीर
जो जल मय पूर्ण कलश देखे, उनने भी यही बताया है । वह सुख की प्यास बुझाने को, अमृत-घट बन कर आया है ||
जो दिखा सरोजमयी सरवर, उसने भी बारम्बार उसको सहस्र से आठ अधिक,
श्रद्दा |
शुभ लक्षण का श्रागार कहा |