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चौथा सर्ग
जो,
गज ऐरावत सा देखा उसका फल उत्तम जानो तुम ।
इस क्षण से एक सुलक्षण सुत - की माता निज को मानो तुम ||
अब सुनो, स्वप्न में
जो बात विशेष
वह सुत की धर्म
की ही सामर्थ्य
तदनन्तर जो वह सिंह दिखा, उसने भी यही बताया है । निस्सीम शक्ति की धारक उस, गर्भस्थित शिशु की काया है ।।
दृष्ट वृषभ, बताता है ।
धुरंधरता -
दिखाता है ।
पश्चात् दिखी जो लक्ष्मी है, वह भी देती सन्देश यही । होगा चिर मुक्ति स्वरूपा उस लक्ष्मी का भी प्राणेश यही ॥
सुरभित सुमनों की माला ने, भी यह ही निस्सन्देह कहा । जग में प्रसिद्ध हो पायेगा, वह जगती भर का स्नेह महा ||
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