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चौथा सर्ग
भूपति ने भी उठ स्वयं उन्हें, निज वामासन पर बैठाया । श्रागमन-प्रयोजन सुनने को, उनका अन्तस् था ललचाया ॥
श्रतएव प्रेम से बोले वे, 'श्राने का हेतु बताभो अब । मैं उसे जानने को उत्सुक, इससे मत देर लगाश्रो अब ॥'
यह सुन 'त्रिशला' ने कहा-'नाथ ! मैं सब कुछ अभी बताती हूँ। हैं श्राप समुत्सुक सुनने को, मैं कहने को ललचाती हूँ |
जब तक न आप से कह लूगी, होगा मुझको भी तोप नहीं । जो गुप्त प्रापसे हो, ऐसामेरे भावों का कोष नहीं ।।
तो सुनें, यामिनी में मैंने, है सोलह स्वप्नों को देखा। पर उनका क्या है फलादेश, मैं लगा न पायी यह लेखा ।।