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श्रतएव शरण में आयी हूँ,
मैं अपने भाग्य विधाता की । अपने मतिमान वृहस्पति की, अपने
जीवन-निर्माता
की ॥
अब आप कृपा कर स्वप्नों के, सोलह दृश्यों के नाम सुनें ।
व्यापक प्रज्ञा में,
ही परिणाम गुने ||
सुन अपनी
उन सब का
हैं आप स्वयं ही विज्ञ, अतः
मैं नाम
मात्र ही
हाँ, आप कहेंगे
जो
फल उसे अवश्य
सँजो
बोलूँगी |
विस्तृत -
लँगी !!
परम ज्योति महावीर
उन दृश्यों के क्रम को नहीं अभी, तक मेरी संस्मृति भूली भी, कारण न अल्प भी पड़ने दी । उन पर विस्मृति की धूली भी ।।
वे सोलह ये गजराज, वृषभ, हरि, लक्ष्मी का संस्नान तथा । माला, शशि, रवि, युग मीन, कलश, सर, सिन्धु, सिँहासन, यान तथा ॥