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परम ज्योति महावीर जिस ओर वहाँ पर देखो, बस सुखदायी शान्ति दिखाती थी । जो नृप की शांति-व्यवस्था कोही बारम्बार बताती थी ।
जितने जन वहाँ उपस्थित थे, अणुमात्र किसी को खेद न था। अधिकार यथोचित सबको थ,
पर पक्षपात औ' भेद न था । इतने में 'त्रिशला' श्रा पहुँची, समयोचित नव शृंगार किये । नृप के श्रासन में समभागीबनने का भी अधिकार लिये ।।
सामन्त, सभासद, सेनापति, सब ही उनको पहिचान गये । कारण विशेष है पाने का,
यह भी वे सहसा जान गये ।। अविलम्ब खड़े हो सबने ही, उनको निज शीश मुकाया भी। निज विनय प्रदर्शन से महिषीके प्रति सद्भाव दिखाया ही ।।