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चौथा सर्ग
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'सिद्धार्थ' सिँहासन पर बैठेथे आनन पर अति श्रोज लिये। ऊपर को भाल उठाये औ' नीचे को चरण-सरोज किये ।। .
बहुमूल्यमयी नव भूषा से, शोभित थे अनुपम अंग मभी । उनकी परिमार्जित अभिरुचि के,
सूचक थे जिसके रंग सभी ।। निज नियत आसनों पर सविनय अासीन सभी अधिकारी थे। जो अपने अपने पद के ही, अनुरूप रूप के धारी थे।।
उस राज सभा की नियमावलिको भंग न करता था कोई । सबके अन्तस् में अनुशासनकी नव बीजावलि थी बोयी ।।
प्रहरी गण भी थे मौन खड़े, परिषद् गृह के हर कोने में । सम्राट-प्रताप मलकता था, उनके यों तत्पर होने में ।